दुनिया की ऐसी अदालत जहाँ दी जाती है देवी देवताओ को मौत की सजा….

छत्तीसगढ़ के हर कोने में अलग-अलग परंपराएं हैं कई बार तो इनके होने पर भी आश्चर्य होने पर भी आश्चर्य होने लगता है। आज हम आपको एक ऐसे ही स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं जहां देवी- देवताओं को मन्नत पूरी ना करने पर जनहित में कार्य ना करने पर दंड भुगतना पड़ता है।
यह अनोखा मंदिर छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के केशकाल नगर में स्थित है और इसे भंगाराम देवी का मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां प्रतिवर्ष जात्रा का आयोजन किया जाता है। इसमें होता है न्याय

यह सत्य घटना छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल की है। कोंडागांव के केशकाल में परंपरानुसार प्रतिवर्ष भादो मास के कृष्ण पक्ष में शनिवार के दिन भादो जातरा आदिवासियों का पर्व का आयोजन किया जाता है। यात्रा के पहले पांच अथवा सात शनिवार को सेवा विशेष पूजा की जाती है और अंतिम शनिवार के दिन इस यात्रा का आयोजन होता है।
भंगाराम देवी यहां के करीब 55 ग्रामों में विराजित सैकड़ों देवी देवताओं की आराध्या हैं। यहां होने वाले इसी जात्रे का नजारा अद्भुत होता है। यहां आसपास के ग्रामों से ग्रामवासी अपने देवी देवताओं को लेकर जात्रे में पहुंचते हैं। इसके बाद लगती है कचहरीए जिसमें सैकड़ों शामिल होते हैं।

जिसमे देवताओं की अदालत लगेगी। सुनवाई भी होगी, यदि कोई देवी देवता पर दोष सिद्ध तो सजा अन्यथा रिहाई। बेशक, यह सुनने में हैरान रह जाएंगे लेकिन आज हम आपको इसकी पीछे की पूरी कहानी बातएंगे।

बस्तर के केशकाल में लगती है ऐसी अदालत जहा पर देवी देवताओ की पेशी होती है जज की भूमिका में होती है बारह मोड़ वाली सर्पीली केशकाल घाटी के ऊपर मंदिर में विराजित भंगाराम देवी। प्रार्थी के रूप में मौजूद श्रद्धालुओं की शिकायतों के आधार पर देवी-देवताओं को निलंबन, मान्यता समाप्ति से लेकर सजा-ए-मौत तक का दंड सुनाया जाता है।

इस कचहरी में ग्रामवासी अपनी समस्या सुनाते हैं वे देवी.देवताओं के खिलाफ भंगाराम देवी के सम्मुख अपनी शिकायत करते हैं। सुबह से शाम तक यही सिलसिला चलता है और शाम को होता है फैसला।

दरअसल यह मानना है पुजारी इस पूरी प्रक्रिया में बेसुध हो जाता है लोगो का मानना है की भंगाराम देवी ही पुजारी के शरीर में प्रवेश कर निर्णय सुनती है और जिन देवी देवताओ को सजा मिलति है उन्हें मंदिर से बहार बनी एक खुले मैदान में रख दिया जाता है और यदि उन्हें सजा में मृत्युदंड दिया जाता है तो उस मूर्ति को खंडित कर दी जाती है अन्य सजा प्राप्त देवी.देवता उसी स्थिति में तब तक रहते हैं जब तक कि वे अपने किए की माफी नही मांगते और दोबारा जनहित के कार्य करने का वचन नही देते। यह कार्य वे पुजारी को स्वप्न में आकर करते हैं। जिसके बाद उनकी वापसी होती है।

इस मंदिर से कोई भी सामग्री वापस नही जाती और ना ही यहां से कोई भी कुछ ले जाता है। इस यात्रा में महिलाएं शामिल नहीं होतीं।
सबसे पहले थाने में देनी होती है हाजिरी
भंगाराम माई के पास जाने से पहले भंगाराम सेवा समिति के सदस्य सभी देवी-देवताओं के प्रतीकों को थाने ले जाते हैं। वहां हाजिरी लगती है। थाने में तैनात जवान देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, फिर पुलिस की सुरक्षा में देवी-देवताओं को पूजा स्थल भंगाराम देवी मंदिर तक लाया जाता है।

बीमारी होने पर पूजे जाते हैं डॉक्टर खान
यंहा के जानकार बताते हैं कि वर्षों पहले क्षेत्र में एक डॉक्टर खान थे, जो बीमारों का इलाज पूरे सेवाभाव और नि:स्वार्थ रूप से करते थे। उनके नहीं रहने पर यहां के ग्रामीणों ने उन्हें देवता के रूप में स्वीकार कर लिया है, जो भंगाराम देवी मंदिर में विराजित हैं। क्षेत्र में किसी बीमारी का प्रकोप होने पर सबसे पहले इनकी ही पूजा की जाती है।

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