भगवान राम ने इस रहस्यमयी गुफा में बिताए थे वनवास के 12 साल….

भगवान राम सद्गुणों के भंडार हैं इसीलिएआज भी हिन्दू धर्म में उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। आज हम आपको भगवान राम के वनवास के दौरान कुछ रोचक बातों के बारे में

भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ, जिसके 12 साल उन्होंने छत्तीसगढ़ में बिताए थे। इस वनवास काल में भगवान राम ने कई साधु-संतों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटना जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया।
रामायण में उल्लेखित और अनेक शोधकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है।

वनवास के दौरान भगवान राम के छत्तीसगढ़ में भी प्रवास के साक्ष्य मिले हैं। इतिहासकारों के अनुसार अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद श्रीराम ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रय स्थल बनाया। यह जंगल क्षेत्र था दंडकारण्य। यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां के नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के प्रवास के सबूतों की भरमार है। वनवास के दौरान राम ने अपना लंबा समय यहां बिताया था. जिसमे से एक गुफा कुटुमसर है।
वनवास के दौरान भगवान राम ने बस्तर में मौजूद एक गुफा में भी लंबा समय यहां बिताया था। जो लोग उस गुफा में गए हैं, उन्होंने बताया कि गुफा के आखिरी छोर पर एक अद्भुत शिवलिंग है।

छत्तीसगढ़ अपनी आदिवासी संस्कृति के साथ कई आश्चर्यजनक प्राकृतिक स्थल को अपने गोद में लिए हुए है, उन्हें में से एक है कोटमसर गुफा जिसे कुटुमसर के नाम से भी जानते हैं। यह हैरत अंगेज प्राकृतिक भूमिगत गुफा के लिए जाना जाता है।

कुटुमसर गुफा
यह गुफा छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में जगदलपुर के समीप कांगेर वेली राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। इस गुफा को मूल रूप से गोपांसर गुफा के नाम से जाना जाता था लेकिन यह गुफा यह ‘कोटसर’ गाँव के पास स्थित होने के कारण इस गुफा का नाम कुटुमसर हो गया। यह गुफा प्रक्रति प्रेमियों के लिए किसी अमूल्य उपहार से कम नही है।

कुटुमसर गुफा की स्थिति
इस गुफा की गहराई लगभग 54 से 120 फीट है और लंबाई 4500 मीटर है। यह समुद्र ताल से लगभग 560 मीटर की ऊँचाई पर है। कुटुमसर गुफा अपने आप में रोचक इसलिए है क्योंकि इसके अंदर की बनावट बहुत ही खूबसूरत है गुफा के अंदर चूना पत्थर से बनी आकृतियां है जिन पर प्रकाश पड़ने पर कई तरह की आकृतियां नज़र आती हैं।
कुटुमसर की गुफा में बनी आकृतियां
इस गुफा के भीतर चुने हुए पत्थर से बने स्टेलाइटाइट और स्टैलेग्माइट आकृतियां पाई जा सकती हैं। इस गुफा में बहुत अधिक अंधेरा रहता है जब इन पर टॉर्च की रौशनी पड़ती है तो यहां चूना पत्थर से बनी विभिन्न आकृतियां चमक उठती है जिन्हें देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। आपको इन आकृतियों में जितने रूप पसंद हैं, उतने ही रूप देखने को मिलेंगे।

इस गुफा के अंदर बनी आकृतियां चूना पत्थर, कार्बनडाईऑक्साइड और पानी की रासायनिक क्रिया के कारण उपर से नीचे की ओर कई सारी प्राकृतिक संरचनाएं बन गई है जो अब भी धीरे धीरे बनते ओर बढ़ते जा रहे है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है साथ ही यह कोटमसर गुफा ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से जुड़ा हुआ है।

कुटुमसर के अंदर कई सारे जीव जंतु है लेकिन पूरे भारत में सिर्फ इस गुफा के अंदर रंग बिरंगे अंधी मछली पाई जाती है। इस मछली के प्रजाति का नाम गुफा के खोजकर्ता प्रो. शंकर तिवारी के नाम पर रखा गया है।

इस रहस्यमयी गुफा में हैं अंधी मछलियां
पानी से घिरी हुई यह अंधेरी कुटुमसर गुफा, जहां अंधी मछलियां रहती है। यह गुफाएं बहुत पुरानी बनी है और अंधी मछलियों के लिए मशहूर है, जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती जिसके कारण यहां आने वाला व्यक्ति पूरी तरह अंधा महसूस करता है। जिसके कारण यहां कि मछलियों की आखों पर एक पतली सी झिल्ली चढ़ चुकी है, जिससे वे पूरी तरह अंधी हो गई हैं।

कुटुमसर गुफा को देखने का समय
अगर आप कोटमसर गुफा आने का मन बना रहे हैं तो आपको कुछ जरूरी बातों का ध्यान में रखना चाहिए। यह गुफा घने जंगल के बीच है जो कई आपको इस गुफा तक जाने के लिए जिप्सी का इस्तेमाल करना होगा जिसका किराया लगभग 1500 रुपए है।
इस गुफा को मानसून के दौरान बंद के दिया जाता है क्योंकि इस समय गुफा में पानी भरने और अन्य जहरीले जीव जंतु से खतरा रहता है। इस गुफा को देखने का सबसे अच्छा समय ठंड के मौसम में होता है। गुफा में प्रवेश करने से पहले आपके पास एक अधिक रोशनी वाला टॉर्च होना चाहिए ताकि आप इस गुफा के अंदर की खूबसूरती को निहार सकें इसके अलावा आपके पास अच्छे जूते होने चाहिए ताकि गुफा के अंदर फिसलन से बच सकें।

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