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रतनपुर में गिरा था माता सती का दाहिना स्कंध जानिए |क्यों है रहस्यों से भरा माता का यह मंदिर

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धान का कटोरा कहे जाने वाले यह छत्तीसगढ़ पूरे देश में अपनी परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां पर किसी भी धर्म के प्रति भेदभाव नहीं किया जाता। छत्तीसगढ़ की भूमि में अनेक अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित धार्मिक स्थल बनाए गए हैं जहां पर भक्तगण अपने मान्य देवता की पूजा अर्चना करते हैं। आज हम इस लेख द्वारा आदि भवानी महामाया देवी की मंदिर महामाया मंदिर के बारे में बात करेंगेे।

महामाया मंदिर छत्तीसगढ़ के मुख्य धार्मिक स्थलों में से एक है। यह भारत के पवित्र और पूजनीय 51 शक्तिपीठ में से एक है। इस मंदिर का शक्तिपीठ में शामिल होने के कारण इसकी मान्यताएं और भी बढ़ जाती है। यह मंदिर बिलासपुर जिले में रतनपुर नगर में स्थित है। रतनपुर रायपुर से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

आइये आपको रतनपुर नगर के इतिहास के बारे में बताते है

आज से लगभग 1000 वर्ष पहले किसी भी क्षेत्र को एक राज के रूप में बांटा जाता था। उसी प्रकार वर्तमान के छत्तीसगढ़ में भी कई राज हुआ करता था जिनमें से रतनपुर राज और रायपुर राज दोनों शामिल थे।

इस अलग अलग राज में से प्रत्येक राज में कुल 18 गढ़ हुआ करता था। प्रत्येक राज में 18 गढ़ होने के संबंध में कहा जाता है कि वंशी राजा कोकल्लदेव के 18 पुत्र थे और उन्होंने अपने राज्य को 18 हिस्सों में बांटकर अपने पुत्र को दे दिया।

इसमें से भी प्रत्येक गढ़ में 7 तलुका और प्रत्येक तालुका में कम से कम 84 गांव होना अनिवार्य था। इस प्रकार से एक तालुका में 84 गांव से ज्यादा तो हो सकता था लेकिन इससे कम नहीं हो सकता था। इस प्रकार से रतनपुर राज में प्राचीन काल में राजाओं का ही राज चलता था।

अगर बात करें रतनपुर की महामाया मंदिर के बारे में तो इस मंदिर का निर्माण संभवतः 12 वीं शताब्दी से पहले हुआ है ऐसा माना जाता है। इस मंदिर पर प्रतिवर्ष दोनों नवरात्रों पर माता केे लाखों भक्त इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैंं।

मंदिर के गर्भ गृह में माता महामाया देवी की विशेष मूर्ति स्थापित है। देवी की मूर्ति को दोनों नवरात्रों में विशेष प्रकार से सजाया जाता है साथ ही साथ इस मूर्ति का अभिषेक भी किया जाता है।

आदि भवानी महामाया देवी के संबंध में कई लेख मिलते हैं जिनके अनुसार कहा गया है कि – आदि भवानी महामाया देवी भगवान बुद्ध की माता है तथा इनके पिता सुप्रबुद्ध हैै। साथ ही साथ यह कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोधन की महारानी थी।

इन्हें ही धन की देवी भी कहा जाता है। देवी को प्राचीन काल से धन की देवी के रूप में माना जाता है। महामाया देवी की पूजा प्राचीन काल से ही होती आ रही है। अगर यूपी के दलितों की माने तो हाथी के मूर्ति को महामाया के गर्भ का प्रतीक और सफेद कमल पुष्पक को कोईया फूल का प्रतीक मानते हैं।

महामाया मंदिर का इतिहास

रतनपुर के महामाया मंदिर के संबंध में एक विशेष उल्लेख किया मिलता है कि मां महामाया का सिर यहां स्थापित है और माता का धड़ बिकापुर में स्थित हैै। यह कथा एक प्रचलित दंतकथा के अनुसार बताया गया है।

माता के सिर महामाया मंदिर में होने के संबंध में कहा जाता है कि मंदिर के निकट पहाड़ी पर मां महामाया और समलाया देवी की स्थापना की गई है। समलेश्वरी देवी इससे पहले संबलपुर पर स्थापित थी। इस समलेश्वरी देवी को उड़ीसा के संबलपुर में श्रीगढ़ के राजा ने लाया था। ऐसा माना जाता है।

इसके पश्चात मराठा सैनिक द्वारा इन दोनों मूर्तियों को अपने साथ नागपुर ले जाने की कोशिश की गई। एक बार मराठा सैनिकों ने मंदिर पर आक्रमण कर दिया आक्रमण मूर्तियों को ले जाने के लिए किया गया था। जिसके विपक्ष में वहां के दो बैगा ने मूर्ति को बचाना चाहा और एक बैगा ने महामाया माता की मूर्ति और दूसरे बैगा ने समलेश्वरी देवी की मूर्ति को कंधे में लेकर वहां से भाग गए।

सरगुजा से दोनों बैगा ने दोनों मूर्तियों को अपने कंधे में उठाकर भागना प्रारंभ किया और उसके पीछे मराठा सैनिक पड़ गए। मराठा सैनिकों की टोली में घुड़सवार भी शामिल थे। इसके पश्चात मराठा सैनिकों नेे बैगा के पीछे घुड़सवार को लगा दिया।

जिसके पश्चात इन घुड़सवार ने एक बैगा को महामाया मंदिर स्थल पर और दूसरे बैगा को समलाया मंदिर स्थल पर पकड़ लिया। इसी घटना के पश्चात से ही महामाया मंदिर और समलाया मंदिर के बीच लगभग 1 किलोमीटर की दूरी बनी हैै।

कथा के अनुसार मराठा सैनिक ने इन दोनों मूर्तियों को अपने साथ ले जाना चाहा लेकिन शायद किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और मराठा सैनिक उन दोनों मूर्तियों को अपने साथ ले जाने में असफल रहे।

इसके पश्चात मराठा सैनिक द्वारा इन दोनों मूर्तियों को अपने साथ नागपुर ले जाने की कोशिश की गई। एक बार मराठा सैनिकों ने मंदिर पर आक्रमण कर दिया आक्रमण मूर्तियों को ले जाने के लिए किया गया था। जिसके विपक्ष में वहां के दो बैगा ने मूर्ति को बचाना चाहा और एक बैगा ने महामाया माता की मूर्ति और दूसरे बैगा ने समलेश्वरी देवी की मूर्ति को कंधे में लेकर वहां से भाग गए।

सरगुजा से दोनों बैगा ने दोनों मूर्तियों को अपने कंधे में उठाकर भागना प्रारंभ किया और उसके पीछे मराठा सैनिक पड़ गए। मराठा सैनिकों की टोली में घुड़सवार भी शामिल थे। इसके पश्चात मराठा सैनिकों नेे बैगा के पीछे घुड़सवार को लगा दिया।

जिसके पश्चात इन घुड़सवार ने एक बैगा को महामाया मंदिर स्थल पर और दूसरे बैगा को समलाया मंदिर स्थल पर पकड़ लिया। इसी घटना के पश्चात से ही महामाया मंदिर और समलाया मंदिर के बीच लगभग 1 किलोमीटर की दूरी बनी हैै।

कथा के अनुसार मराठा सैनिक ने इन दोनों मूर्तियों को अपने साथ ले जाना चाहा लेकिन शायद किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और मराठा सैनिक उन दोनों मूर्तियों को अपने साथ ले जाने में असफल रहे।

इसके पश्चात मराठा सैनिकों के मुखिया ने एक सुझाव दिया। मुखिया ने कहा कि अगर इस मूर्ति को अपने साथ ले जाना संभव नहीं है तो इस मूर्ति के सर को काटकर अपने साथ ले जाओ।

इसके पश्चात मराठा सैनिकों ने अपनी मुखिया की बात मान ली और मूर्ति के सर काटकर रतनपुर की ओर आगे बढ़ गए। माता की मूर्ति के सर को काटने से माता नाराज हो गई और इसका प्रकोप सैनिकों को झेलना पड़ा।

कहा जाता है कि दैवीय प्रकोप के कारण एक मील पर रुकते ही सैनिकों में एक सैनिक की मृत्यु हो जाती थी। जब सिर पकड़े हुए सैनिक की मृत्यु हो जाती थी तो सिर को किसी दूसरे सैनिक द्वारा आगे बढ़ाया जाता था। इसके पश्चात अगले मील पर उसकी भी मृत्यु हो जाती थी।

ऐसा कहा जाता है कि रतनपुर तक पहुंचते-पहुंचते पूरे सैनिकों का संहार माता के दैवी प्रकोप के कारण हो गया। रतनपुर के महामाया मंदिर के नीचे देखने पर दो सिर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैै।

ऐसा कहा जाता है कि रतनपुर तक पहुंचते-पहुंचते पूरे सैनिकों का संहार माता के दैवी प्रकोप के कारण हो गया। रतनपुर के महामाया मंदिर के नीचे देखने पर दो सिर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैै।

इन दोनों के संबंध में कहा जाता है कि पहला सिर महालक्ष्मी माता का है और दूसरा सिर महासरस्वती का है।

यंहा पर गिरा था माता सती का स्कन्ध

यह मान्यता है की भगवान शिव माता सती की मृत्यु से व्यथित होकर उनके शरीर को लेकर ब्रम्हाण्ड में भटक रहे थे। जिन-जिन स्थानों पर माता सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ बन गए। जिसे शक्तिपीठ की मान्यता मिली। माता सती की दाहिना स्कन्ध महामाया मंदिर में गिरा था। इसे कौमारी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। इस कारण माता के 51 शक्तिपीठों में इस स्थल को शामिल किया गया है।

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