माँ चन्द्रहासनी मंदिर का पूरी रहस्य और अनोखी कहानी

चंद्रपुर की गाथा
महानदी के तट पर चंद्रपुर में विराजमान माँ चन्द्रहासनी माँ दुर्गा के 52 शक्तिपीटो में से एक है प्रतिवर्ष देश विदेश में लाखो श्रद्धालु माँ चन्द्रहासनी देवी के दर्शन के लिए चंद्रपुर पहुंचते है बसंती एवं सारदा नवरात्री पर्व पर यहाँ भक्तो की भारी भीड़ लगी होती है. वही दोनों गुफ्त नवरात्री पर्व पर भी विशेष पूजा पर आयोजन किया जाता है.

देश में 52 शक्तिपीट है शक्तिपीट के बारे की मान्यता है की अपने पिता के मुख से अपने पति भगवान शंकर के बारे में अपमानजनक शब्द सुनाने के बाद यज्ञ की अग्नि में कूद जाती है जानकारी होने पर भगवान शंकर सती के शरीर को कंधे पर जब सती के अंग जब जहा जहा धरती पर गिरे थे वहाँ माँ दुर्गा के शक्तिपीट माने जाते है.
महानदी का रौद्र रूप
महानदी व मांड नदी के बिच बसे चंद्रपुर में माँ दुर्गा के 52 शक्तिपीटो में से एक स्वरूप माँ चंद्रहंसनी के रूप में विराजित है. चन्द्रमा के आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्ध चंद्रहंसनी और चंद्रसेनी माँ नाम जगत से फैली हुई है. लेकिन इनका स्वरूप चन्द्रमा से भी सुन्दर है माता चंद्रसेनी के इस दर्शन मात्रा से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और माँ अपने भक्तो की मनोकामनाएं दो अगरबत्ती फूल से ही परिपूर्ण कर देती है.

चंद्रपुर जिला मुख्य जांजगीर से 120 किलो. मी. तथा रायगढ़ 32 किलो. मी. की दूरी पर स्थित है आस पास के लोग इसे चंद्रसेनी देवी भी कहते है चारो ओर प्राकृतिक सुंदरता से गिहरे चंद्रपुर की फिजा बहुत ही मनोरम है. एक और जहा महानदी अपने स्वक्छ जल से माता चंद्रसेनी के पाव पखारती है वही दूसरी ओर मांड नदी क्षेत्र के लिए जीवनदायनी से कम नहीं है.
कुछ वर्ष पूर्व चंद्रपुर मंदिर पुराने स्वरूप में था लेकिन जब से ट्रस्ट का गठन हुआ है. इसके बाद से मंदिर व परिसर का स्वरूप पूरी तरह बदलचूका है. मंदिर का मुख्य द्वार इतना आकर्षक और भव्य है की यहाँ पहुंचने वाले श्रद्धालु उसके तारीफ किये बगैर नहीं रहते.
अद्धभुत अनोखी कहानी
मंदिर परिसर में अर्धनरेस्वर महा बल सारी पवन पुत्र कृष्णा लीला चीरहरण महिसासुर वध चारो धाम नव ग्रह की मुर्तिया स्वरधम सवभा तथा अन्य देवी देवताओ की भव्य कला मुर्तिया जीवनदय लगती है इसके अल्वा मंदिर परिसर में ही स्थित चलित छाकी महाभारत काल का सजीव चित्रण है. जिसे देख कर महाभारत के चरित्र और कथा के विस्तार से जानकारी भी मिलती है.

दूसरी ओर भूमि की ओर बनी सुरंग रहस्यमयी लगती है और इसका भ्रमण करने पर रोमांच लगता है. वही माता चंद्रसेनी की चन्द्रमा आकर की प्रतिमा के एक दिन दर्शन मात्र से भक्तो की सभी मनोकामना पूर्ण होती है. चन्द्रहासनी माता के मुख मंडल चाँदी से चमकता है .
ऐसा नजारा देश-भर में अन्य मंदिरो भर में दुर्लभ है. चन्द्रहासनी मंदिर के कुछ दूर आगे के महानदी के बिच में नाथलदाई का मंदिर स्थित है. कहा जाता है की माँ चन्द्रहासनी के दर्शन के बाद माता नाथलदाई की दर्शन भी जरुरी है. यह भी कहा जाता है की महानदी में बरसात के दोरान लबा लब पानी भरे होने के बाद भी माँ नाथलदाई का मंदिर नहीं डूबता.

एक्यवाण निति के अनुसार हजारो वर्षो पूर्व सरगुजा की भूमि को छोड़ कर माता चन्द्ररसेनी देवी उदयपुर और रायगढ़ होते हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आती है . महानदी की पवित्र सीतल धरा से प्रभावित होकर वो यहां पर वह विश्राम करने लगती है. वर्षो व्यतीत हो जानेपर भी उनकी नीद नहीं खुलती एक बार सम्भलपुर के राजा के सवारी से गुजरती है. तभी अनजाने में सेनिदेवी को उनका पैर लग जाता है और माता की नीद खुल जाती है. फिर स्वपना में देवी भी उन्हें मंदिर का निर्माण मोती स्थापना करती है.

सम्भलपुर के राजा चन्द्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी साधना का उल्लेख मिलता है. देवी की आकृति चन्द्रहास जैसे होने के कारण होने चन्द्रहासनी भी कहा जाता है. राज परिवार ने मंदिर की व्यवस्था का भार यहाँ की जमींदार को सॉफ दिया यहाँ की जमींदार ने अपनी कुलदेवी शिवकर करके पूजा अर्चना की इसके बाद से माता चन्द्रहासनी की आराधना जारी है.
यहाँ वर्षभर श्रद्धालुओ का तताल लगा रहता है. वही वर्ष के दोनों नवरात्री पर्वो पर मेले जैसा माहौल रहता है. तथा दोनों गुफ्त नवरात्री पर भी यहाँ विशेष पूजा अर्चना पर आयोजन किया जाता है. छत्तीसगढ़ के आलावा अन्य राज्यों के श्रद्धालु यहाँ नवरात्री में ज्योति कलश प्रज्वलित कराकर माँ से सुख समृद्धि का कामना करते है. कई श्रद्धालु मनोकामना पूरी करने के लिए यहाँ बकरे व मुर्गी की बली देते है.