छत्तीसगढ़ के रतनपुर में स्थित माँ महामाया मंदिर का क्या है रहस्य

महामाया की महिमा
युगो पहले जब भगवान शिव ने किया था तांडव. जहा माता सती गिरा था स्कंध महादेव ने ‘भैरव’ को बनाया जिसका रक्षक. खुद देवो के देव ने दिया था जिसको नाम. जहा विराजती है महामाया. क्या वो तंत्र साधना का केंद्र था ? क्या दी जाती थी वह बली ? क्या है ‘शक्तिपीट’ का रहस्य ? क्या है रत्नदेव के रतनपुर की कहानी ? कैसी है ‘महामाया की महिमा’ ?

एक माँ की शक्तिपीट की गुणगान युगो से चला आ रहा है 51 शक्तिपीटो में से एक माँ महामाया देवी शक्तिपीट ऐतिहासिक तथ्यों और मान्यताओं के मुताबिक छत्तीसगढ़ के रतनपुर में स्थित माँ महामाया देवी का मंदिर एक हजार 42 ईस्वी के आस-पास के अस्तित्व में आया
महामाया की अलौकिक कहानी
पौराणिक कहानी है प्रजापति दक्क्ष की बेटी थी देवी सती, देवी सती ने भगवान शिव की आराधना की और उन्हें पति के रूप प्राप्त किया. लेकिन प्रजापति दक्क्ष को ये रिश्ता मंजूर नहीं था. वो नहीं चहते थे की उनकी बेटी की शादी भगवान शिव से हो. इसलिए शादी के बाद दक्क्ष ने देवो के देव से कोई सम्बन्ध नहीं रखा.
एक बार दक्क्ष एक बड़ा यज्ञ कर रहे थे. सभी देवता को उसमे बुलाया गया. लेकिन भगवन शिव को निमंत्रण नहीं मिला. देवी सती को ये बात अच्छी नहीं लगी और वो अपने पिता को समझने के लिए गई . लेकिन वहा अपनी पति का तिरस्कार देखने के बाद वो क्रोध में हवंन कुंड में कूद गई और अपनी शरीर का त्याग कर दिया .ये बात भगवन शिव तक पहुंची तो उन्होने वीरभद्र को भेजा वीरभद्र ने दक्क्ष की सेना को हरा कर उनका सिर काट दिया.

इस पौराणिक कहानी के मुताबिक पत्नी सती की मौत से दुखी भोलेनाथ ने उनकी शरीर को हाथो में लेकर भोलेनाथ ने तांडव शुरू कर दिया. जिससे ब्रह्माण्ड में तबही मचने लगी. इसे देख भगवान विष्णु ने भोलेनाथ का मोह ख़त्म करने के लिए अपना चक्र चलाया. जिसने देवी सती की शरीर की टुकड़े करना शुरू कर दिया. देवी पुराण के मुताबिक 51 जगह सती के शरीर की अंग गिरे और वो सभी जगह शक्तिपीट बन गए . इन्हो 51 शक्तिपीट में से एक है . माँ महामाया का मंदिर .
बिलासपुर के करीब 25 किलो मी. दूर कुदरत के असीम सुंदरता के बिच स्थित है रतनपुर इस नगर में प्रवेश करते ही दूर से नजर आती पर्वत शृंखला न सिर्फ़ प्राकृतिक का अहसास कराती है. बलकि महामाया सक्ती का अहसास होता है .ऐसा लगता है मनो धर्म और आस्था की नदी में जोता लगया हो. रतनपुर के महामाया मंदिर में तीन देवी की पूजा होती है. महाकाली ,महालक्ष्मी, और महासरस्वती भक्तो को माँ यहाँ तीन रूपों में दर्शन देती है इन तीनो रूपों को ही एकाकार स्वरूप महामाया कहा जाता है.

महामाई सक्तिपीटो कई मायने में शक्तिपीटो में से अलग है. एक ऐसा एकलौता मंदिर है जहा गर्भगृह में माँ लक्ष्मी गहराई में और माँ सरस्वती उचाई पर विराजमान है. दरअसल ये एक ज्ञान है. युग में ज्ञान का एहमियत हमेशा धन से ज्यादा रही है. इसलिए यहाँ धन की लक्ष्मी देवी गहराई में तो वही विद्या की देवी माँ सरस्वती उचाई पर है. यहाँ की एक और खासियत है. की मंदिर की घर गृह में महाकाली को अदृस्य माना जाता है.

कभी रतनपुर में बली प्रथा का प्रचलन था यहाँ माँ की पूर्णिमा पर मेले का आयोजन किया जाता था. तब नवरात्री का महत्व यहाँ वैसा नहीं था जैसा अब है. माना जाता है की मंदिर के अंदर कुंड में पशुवली दी जाती थी. लेकिन समय के साथ बलि प्रथा बंद हो गई. और माँ की पूर्णिमा के जगह नवरात्री की पूजा की भी अहमियत ज्यादा हो गई. माँ महामाया की महिमा दूर-दूर तक है मान्यता है की मांगी गई मुराद पूरी होती है.

700 साल पुराना इतिहास आज भी यहाँ के पथरो यहाँ के मीनारों और यहाँ के दीवारों पर दिखाई पड़ता है. राजा का जुड़व लगभग 700 साल पहले राजा रतनदेव के इस मंदिर की स्थापति कला में आमतौर पर दिखाई देता है. यैसा कहा जाता है की राजा रत्नदेव ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. और जो आज इधर मुर्तिया . कभी माँ महामाया का मंदिर तंत्र साधना का केंद्र भी रहा . नागरसाईली में भी बने ये मंडप 16 स्तंभो पर टिका है.

मंदिर के गर्भगृह में साढ़े तीन फिट लम्बी ऊंची महामाया की प्रतिमा है मंदिर की प्रागण में भोलेनाथ, माँ भद्रिकाली, भगवान सूर्य, भगवान विष्णु , पवनपुत्र हनुमान और भैरवदेव की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है. मान्यता है की यहाँ सच्चे मन की मांगी गई हर मुरादे जरूर पूरी होती है. देश विदेश से श्रद्धालु यहाँ आते है. मान्यता है की यहाँ महामाया की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है नवरात्र के समय बड़ी तादात में भक्त पैदल चल कर आते है महामाया की महिमा लाखो भक्तो को अपनी ओर कीच लाते है.
रतनपुर के भैरवदेव का महत्व
आखिर क्यू भैरवदेव का दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है माँ महामाया की पूजा
700 सालो का इतिहास कलचुरी कालीन का स्भयता और देवी आस्था का बहुत बड़ा केंद्र जो है वो रतनपुर रहा है वैसे अगर देखा जाये तो चार युगो का गावह भी रतनपुर को माना जाता है. यैसा कहा जाता है की दोपर द्रवता सतियुग और कलियुग के प्रमाण इस राजधानी जो की रतनपुर हुआ करती थी .

माँ महामाया मंदिर कुछ धुरी पर स्थित है भैरवबाबा का विशाल मंदिर मान्यता है की भैरव बाबा के बिना वह महमाया की पूजा अधूरी रहा जाती है. दरअसल इसके पीछे पैराणिक कहानी मान्यता है पूजा पाठ और ध्यान अर्चना नव दिनों तक भक्ति आस्था का केंद्र होता है रतनौर का महामाया मंदिर नव दिनों तक मान्यता है की छत्तीसगढ़ के अधिकांश देवी मंदिरो में शक्तिपीटो में ज्योतिकलश जलाने की परम्परा है . और ये परम्परा छत्तीसगढ़ के रतनपुर में भी निर्वाद रूप से लगातार जारी है यैसा कहते है की ज्योतिकलश जलवाने से भक्तो की मनोकामनापूण होती है .