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छत्तीसगढ़ का माँ दंतेश्वरी मंदिर के इतिहास से जुडी रोचक रहस्य कहानी

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छत्तीसगढ़ के दंतेश्वरी मंदिर जो बस्तर के दंतेवाड़ा में स्थित है. यहाँ का अनुपम सौंदर्या भक्तो से भर देता है देवी के दर्शन हेतु धुर-धुर से लोग यहाँ पहुंचते है. मान्यता है की माता सती के दत्त यहाँ गिरने के कारण इस जगह का नाम दंतेवाड़ा पड़ा तथा देवी को दंतेश्वरी कहा जाता है. प्रकृति के रमणीय स्थलों में से एक दंतेवाड़ा माँ के भक्तो का एक पवित्र स्थल है . सक्तिपीट दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर की ऐतिहासिकता एवं उसके प्रामाणिक महत्व के कारण ही यहाँ एक लोक प्रसीद स्थल है . इस मंदिर का निर्माण नागदेव ने करीब 850 साल पहले कराया था. ऐसा माना जाता है .

माँ दंतेश्वरी देवी नदी

अनाग्देव तीरंगना से वारंगल से जब यहाँ आये तो उन्हें दंतेश्वरी माता का वरदान मिला था. की जहा तक निरंगदेव पैदल जायँगे वहा तक उसका राज्य का विस्तार होगा. और साथ में उसके देवी भी पीछे-पीछे आएंगे. लेकिन एक सार्थ यह थी की वो पीछे मुड़ कर नहीं देख सकते अगर वो पीछे मुड़ कर देखते है तो वहा पर देवी को स्थापित करना होगा.अनाग्देव कई रात तक चलते रहे जब चलते – चलते डंकनी संकनी नदी के संगम पर पहुंचे तब नदी के जल में डूबे पैरो के पायल की आवाज पानी के कारण नहीं आ रही थी.

माता दंतेश्वरी देवी की इतिहास

इसलिए अनाग्देव ने पीछे मुड़ कर देखा तो उसके बाद देवी तुरंत आदृश्य हो गई. अनाग्देव जिस इलाके में चले थे. वही आज का बस्तर है. जिस स्थान में माँ दंतेश्वरी आदृश्य हुई थी उस स्थान पर अनाग्देव ने दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण करवाया था. डंकनी और संकनी नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का जिमनोद्वार फली बार वारंगल से आये पंडो अर्जुन कुल के राजाओ ने करीब 700 साल पहले कराया था.

यथार्थ लगभग 14 वी शताब्दी में 1932 व 1935 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जिमनोद्वार बस्तर की महरानी प्रफुलकुमार देवी ने करवाया था. कहते है यहाँ नदी के किनारे अस्टभैरव का आवास है. यहाँ स्थल तांत्रिको के लिए महत्वपूण स्थल है. मान्यता है की यहाँ आज भी तांत्रिक पहाड़ी व गुफाओ में तंत्र विद्या की साधना कर रहे है . 1883 तक यहाँ नरबली का प्रचलन था.

दंतेवाड़ा का शक्तिपीट

जिसे 1883के बाद बंद कर दिया गया.इस मंदिर के प्रणालिक महत्व की बात की जाये तो दंतेश्वरी देवी बस्तर के अर्द्धसासस्त्री देवी के रूप में पूजी जाती है. भरे वनो एम् पहाडिओ से परिपूर्ण इस स्थान में माँ सती के दांत गिरने के प्रोनालिक कथा महत्व दृश्टि कोचर होता है. कहते है की जब सती अपने पिता दक्छ द्वारा आयोजित यज्ञ की यागिनी में खुद पड़ी थी.

तो चारो कोर वह्हाकर मच गया. भगवान शिव का जब इस बात का पता चला तो उन्होंने दक्छ का अंत कर दिया. और यज्ञ को नस्ट कर दिया. परन्तु बाद में दक्छ को जीवनदान भी दिया गया. वह सती के शव को उठाये भगवान शिव ब्रम्हांड में विचरण करने लगे. जिस कारण सती के अंग पृथ्वी के चारो-ओर गिरे और जहा भी उनके अंग गिरे वह स्थान शक्तिपिट कहलाये. इसी प्रकार दंतेश्वरी में माँ का दांत गिरा जिसके कारण यह स्थान शक्तिपीट कहलाये. अनेको रहस्यो में और कहानियो से भरी माँ दंतेश्वरी मंदिर की खूबसूरती लोगो के मन मोह लेती है.

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